Experiences of A Rebel Lawyer-Lover-Saint & ...... Former Law Officer: C.I.C. AND N.I.A.
Saturday, November 28
'धर्म', 'सेक्युलर' 'पंथ','असहिष्णुता' 'आरक्षण' 'मज़हब' 'पुरुष्कार वापसी'' आदि शब्दों ने पका दिया है! विकास की बात कब होगी ...
शुद्ध
धर्म' में
सबका हित समाहित होता है ! धार्मिक आदमी; मानवता की भावना से ओत-प्रोत होता है और उसकी सोच में नफ़रत, विनाश, भेदभाव की भावना दूर तक
नहीं होती ! कुछ लोगों को त्यौहार पर एक पशु की बलि देने में व मास के स्वाद का
आनंद लेने में ही धार्मिकता नज़र आती है !!! जिन लोगों का इन्सानियत से दूर-दूर तक
का नाता नहीं है वो भी धर्म का टोकरा सर पर उठाये हुए गली-गली में धर्म बेच रहे
हैं! जिन लोगों को गाय के गोबर से दूर से ही बदबू आती थी और गाय सिर्फ लाभ का धंधा
थी, आज
उनको उसी गाय में अपनी माँ नज़र आने लगी है और इसी माँ को दूध देते वक़्त घर ले आते
हैं और फिर गलियों भटकने के लिए छोड़ देते हैं ! ऐसा लगता है जैसे 'धर्म', 'सेक्युलर' 'पंथ','असहिष्णुता' 'आरक्षण' 'मज़हब' 'पुरुष्कार वापसी'' जैसे मुद्दे एक राजनीतिक सतरंज
के प्यादे बन चुके हैं। कुछ लोगों का राजनीतिक कैरियर ही समाज को विभाजित करने पर
टीका है, ऐसे
लोग किसी न किसी तरह सुर्खियों रहकर राजनीतिक भविष्य सँवारने में लगे रहते हैं ! और
दुख की बात ये है हम सब भी कहीं न कही इसी सतरंज के प्यादे बन जाते हैं, किसी चाल में प्यादे के जोर पर दूसरे के बादशाह को चेक किया जाता
है लेकिन अगली ही चाल में अगर जरूरत पड़ी तो बादशाह को बचाने के लिए प्यादे को
पिटने दिया जाता है. और इस तरह धूर्त, आडम्बरी और मक्कार लोग राजनीतिक शतरंज की बाज़ी जीत जाते हैं !
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