Tuesday, July 26

भ्रष्ट अधिकारियों के नाम व उनके खिलाफ कार्यवाही की सूचना आम आदमी से नहीं छुपाई जा सकती: हाई कोर्ट का अहम् फैंसला

चंडीगढ़: मंगलवार: खट्टर सरकार द्वारा हरियाणा केडर के भ्रष्ट आई.ए.एस., आई.पी.एस., एच.सी.एस. व एच.पी.एस. अधिकारियों के नाम उनके खिलाफ कार्यवाही की सूचना आर.टी.आई के तहत मना करने के मामले की अंतिम सुनवाई मंगलवार को हाई कोर्ट में पूरी हुई याचिकर्ता सुभाष के वकील प्रदीप रापडिया की बहस सुनने के बाद हाई कोर्ट के जज गुरमीत सिंह संधावालिया ने अहम् फैंसला देते हुए कहा है कि भ्रस्टाचार में संलिप्त आई.ए.एस., आई.पी.एस., एच.सी.एस. व एच.पी.एस. अधिकारियों के नाम व उनके खिलाफ कार्यवाही से सम्बंधित सूचना जनता से नहीं छुपाई जा सकती दरसल याचिकर्ता ने सूचना के अधिकार के तहत उन आई.ए.एस., आई.पी.एस., एच.सी.एस. व एच.पी.एस. अधिकारियों से सम्बंधित सूचना मांगी थी जिनके खिलाफ भ्रस्टाचार के दर्ज होने के बावजूद तरक्की व अन्य लाभ दे दिए गए और सम्मान के साथ रिटायरमेंट भी दे दी गयी । सरकार ने अपने जवाब में कहा कि मांगी गई सूचना अधिकारियों की व्यक्तिगत सूचना है और यह सरकार और अधिकारियों के बीच का मामला है । सूचना आयुक्त नरेश गुलाटी ने भी याचिकर्ता की अपील को सुनने के बाद सरकार के जवाब को ये कहते हुए सही ठहराया की ऐसी सूचना जनता को देने से बड़े अधिकारियों की व्यक्तिगत निजता भंग होगी । ऐसे में मजबूर होकर याचिकर्ता को अपने वकील और अपने वकील प्रदीप रापडिया के माध्यम से हाई कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाना पड़ा । हाई कोर्ट ने 2014 में सरकार को नोटिस ज़ारी करते हुए सरकार से जवाब माँगा था, लेकिन दो साल से सरकार अलग-अलग कारणों से तारीख पर तारीख लेकर मामले को लंबित रखे हुए थी मौजूदा सरकार ने हाई कोर्ट में अपना पक्ष रखते हुए सूचना आयोग के फैंसले को सही ठहराया और कहा कि अधिकारियों के बारे में सूचना जनता को देना जनहित में सही नहीं होगा । इस पर याचिकर्ता के वकील प्रदीप रापडिया एडवोकेट ने बहस के दौरान कहा कि अपने घर में नौकर रखने के लिए भी उसकी आपराधिक पृष्ठभूमि की जांच के लिए पुलिस वेरीफिकेशन जरूरी है। लेकिन आई.ए.एस., आई.पी.एस., एच.सी.एस. व एच.पी.एस. जनता के हितों की रक्षा करने वाले सबसे बड़े नौकर हैं; और ऐसे में भ्रष्ट पृष्ठभूमि के अधिकारियों से सम्बंधित सूचना लोगों से छुपाने का कोई औचित्य नहीं है; जो की सही मायने में अधिकारियों के मालिक हैं । बहस के दौरान ये भी कहा गया कि जब किसी आम आदमी के खिलाफ मुक्कद्मा दर्ज होता है तो मीडिया और अन्य लोग खुलकर मुक्कद्मे के बारे में बोल  सकते हैं, लेकिन भ्रष्ट अधिकारियों के बारे में सूचना देने से मना करके ऐसे अधिकारियों के मीडिया व अन्य लोगों का मुंह बंद कर दिया गया है, ऐसे में एक आम आदमी व भ्रष्ट अधिकारी के बीच भेदभाव किया जा रहा है ।
हाई कोर्ट ने याचिकर्ता के वकील की दलीलों से सहमति जताते हुए नरेश गुलाटी सूचना आयुक्त के फैंसले को रद्द करते हुए कहा कि कि सभी सरकारी अधिकारी जनता के नौकर हैं और जनता के ये जानने का पूरा हक़ है कि कौन अधिकारी भ्रस्टाचार के मामलों में संलिप्त हैं और उनके खिलाफ सरकार ने क्या कार्यवाही की । ऐसी सूचना व्यक्तिगत हो ही नहीं सकती ।


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