Monday, November 6

बच्चों के हाई कोर्ट पहुँचने पर सरकार ने निर्माण कार्य के लिए 20 लाख की राशि जारी की: लेकिन अध्यापकों के रिक्त पदों के बारे में हलफनामा दायर करने के लिए हरियाणा सरकार ने तीसरी बार और अधिक समय माँगा ।

बच्चों के हाई कोर्ट पहुँचने पर सरकार ने निर्माण कार्य के लिए 20 लाख की राशि जारी की: लेकिन अध्यापकों के रिक्त पदों के बारे में हलफनामा दायर करने के लिए हरियाणा सरकार ने तीसरी बार और अधिक समय माँगा

सोमवार :सरकारी स्कूल में बच्चों में जान की सुरक्षा व अध्यापकों की मांग के मामले की सुनवाई सोमवार को हाई कोर्ट में हुई  सुनवाई के दौरान हरियाणा सरकार ने हाई कोर्ट को सूचित किया कि स्कूल में कमरों व टॉयलेट्स के निर्माण कार्य के लिए 20 लाख रुपये की राशि जारी कर दी गयी है । हालांकि बच्चों के वकील प्रदीप रापडिया ने बहस के दौरान कोर्ट को बताया कि राशि सिर्फ जारी की जाती है; असलियत में खर्च नहीं होती । इस पर हाई कोर्ट ने उपायुक्त कैथल व जिला शिक्षा अधिकारी को सख्त हिदायत दी कि वो व्यक्तिगत तौर पर स्कूल में निर्माण कार्य का अवलोकन व निगरानी करेंगे व कोर्ट में रिपोर्ट पेश करेंगे । ऐसे में निर्माण कार्य में किसी भी प्रकार की कोताही के लिए उपरोक्त अधिकारी कोर्ट के प्रति जवाबदेह होंगे । लेकिन देखने वाली बात ये है की क्या हरियाणा सरकार सिर्फ स्कूल सुधार के लिए बच्चों का हाई कोर्ट पहुँचाने पर ही जागेगी । हरियाणा के अनगिनत सरकारी स्कूलों के बच्चे मूलभूत सुविधाओं के लिए तरस रहे हैं ।

            हरियाणा के सभी सरकारी स्कूलों में अध्यापकों के रिक्त पदों के बारे में हलफनामा दायर करने के लिए हरियाणा सरकार ने तीसरी बार और अधिक समय माँगा । स्कूली बच्चों किए वकील प्रदीप रापडिया ने कहा कि हरियाणा सरकार द्वारा जवाब दायर करने के लिए बार समय माँगना गरीब बच्चों की शिक्षा के प्रति सरकार की असंवेदनशीलता को दर्शाता है और इस प्रकार मामले को लटकाकर याचिका के उदेश्य को ख़त्म करने की निति पर काम करने का हरियाणा सरकार पर आरोप लगाया । अगर स्कूल में पढ़ाने के लिए अध्यापक ही नहीं हैं तो निर्माण कार्य के लिए जारी की गयी राशि कोई मायने नहीं रखती । हाई कोर्ट ने हरियाणा सरकार को सख्त हिदायत देते हुए 4 दिसम्बर तक जवाब दायर करने की हिदायत दी है ।दरअसल स्कूल के 45 से अधिक बच्चों ने अपने हाथ से पत्र लिखकर मौलिक शिक्षा निदेशक व जिला शिक्षा अधिकारी को भी मामले से अवगत करवाते हुए लिखा था कि स्कूल की टूटी हुई ईमारत से पत्थर के टुकड़े गिरते हैं और उन्होंने जब से दाखिला लिया है उनको विज्ञान का अध्यापक नहीं मिला और ना ही स्कूल में पीने के पानी व शौचालय की समूचित व्यवस्था है। लेकिन शिक्षा विभाग द्वारा बच्चों की मांगों को अनदेखा करने पर स्कूल के 7 बच्चों ने हाई कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया था । याचिकर में कहा गया है कि बिना अध्यापकों के व बिना सुरक्षित इमारत के बच्चों के लिए अनिवार्य शिक्षा का मौलिक अधिकार बेमानी है। ज्ञात रहे कि माननीय सुप्रीम कोर्ट ने कई फैंसलों में साफ़ कर चुका है कि बिना सुरक्षित के माहौल के व बिना अध्यापकों के अनिवार्य शिक्षा का मौलिक अधिकार बेमानी है।ज्ञात रहे कि मामले की गंभीरता को देखते हुए हाई कोर्ट के जज राकेश जैन ने 11 अक्टूबर को हरियाणा सरकार को फटकार लगाते हुए सरकारी स्कूलों की स्थिति पर चिंता प्रकट की और मुख्य सचिव को हिदायत दी कि वो 23 अक्टूबर को एफिडेविट दायर करके कोर्ट को बताये कि पूरे हरियाणा के सरकारी स्कूलों में अध्यापकों के कितने पद खाली हैं और लड़के और कितने स्कूलों में लड़के व लड़कियों के लिए पीने के पानी व शौचालय की समूचित व्यवस्था है? हालांकि हरियाणा सरकार ने 23 अक्टूबर को हरियाणा सरकार जवाब दायर करने में विफल रही और मामला 30 जनवरी, 2018 तक टल गया था  आधे से ज्यादा सत्र बीत जाने पर भी अध्यापकों के उपलब्ध ना होने व असुरक्षित स्कूली इमारत की स्थिति को ध्यान में रखते हुए मंगलवार को कैथल के बालू स्कूल के छात्रों के वकील प्रदीप रापडिया ने हाई कोर्ट से मामले की जल्दी सुनवाई की गुहार लगाई थी। इस पर हाई कोर्ट ने मामले की जल्दी सुनवाई की याचिका मंजूर करते हुए की सुनवाई क तारीख 6 निर्धारित करते हुए हरियाणा सरकार को इस तारीख तक वाब दायर करने की हिदायत दी थी हाल ही में पटना यूनिवर्सिटी में प्रधान मंत्री मोदी ने विश्वस्तरीय विश्वविद्यालयों के लिए दस हज़ार करोड़ रुपये की सहायता देने की घोषणा की । लेकिन सरकारी स्कूलों में प्राथमिक शिक्षा के लिए मूलभूत सुविधाएं भी उपलब्ध करवाने में विफल होने की स्थिति में विश्वस्तरीय विश्वविद्यालयों की स्थापना का सपना देखना शेखचिल्ली के सपने जैसा है  


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