चंडीगढ़: वीरवार: देश के करोड़ों छात्रों का भविष्य परीक्षा में प्राप्त होने वाले अंकों पर निर्भर करता है। ऐसे में कई छात्रों की शिकायत होती है कि उन्हें उम्मीद से कम अंक मिले हैं। कई बार ये शिकायत वाजिब भी होती है। लेकिन परीक्षा लेने वाली संस्थाएं सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद उत्तरपुस्तिका छात्रों को देने लिए बाध्य तो हैं लेकिन छात्रों को उत्तरपुस्तिका की प्रति लेने के लिए निरुत्साहित करने के उदेश्य से फीस इतनी अधिक निर्धारित कर देती हैं जो देना छात्रों की पहुँच से बाहर होती है । कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के विधि संकाय के छात्र राहुल सेहरावत का ऐसा ही मामला सूचना आयोग के सामने आया । दरअसल जब विधि संकाय के छात्र को अपने एक पेपर में म्मीद से कम अंक मिले तो उसने आर.टी.आई लगाकर अपनी उत्तरपुस्तिका की प्रति विश्वविद्यालय से मांगी, लेकिन उत्तरपुस्तिका देने के लिए विश्वविद्यालय अपने नियमों का हवाला देते हुए ने छात्र से 500 रुपये जमा करवाने को कहा जिसकी शिकायत छात्र ने सुचना आयोग से की ।
वीरवार को सूचना आयोग के सामने याचिकर्ता के वकील प्रदीप रापडिया ने दलील देते हुए कहा कि सूचना के अधिकार के बाद किसी भी नियम का हवाला देकर सूचना के अधिकार के तहत निर्धारित फीस से ज्यादा की मांग नहीं की जा सकती, क्योंकि सूचना का अधिकार क़ानून के बाद अन्य कानूनों का प्रभाव निरस्त हो जाता है । और इतनी अधिक फीस की मांग करना छात्र हितों के साथ खिलवाड़ है । वहीं विश्वविद्यालय के वकील ने कहा कि विश्वविद्यालय द्वारा बनाये गए नियमों के तहत परीक्षा लेने वाली संस्था को सूचना के अधिकार में निर्धारित फीस से ज्यादा शुल्क लेने का अधिकार है। सुचना आयुक्त योगेंदर पॉल गुप्ता ने याचिकर्ता छात्र के वकील प्रदीप रापडिया की की दलीलों से सहमत होते हुए छात्रों की हित में महत्वपूर्ण फैंसला देते हुए कहा कि विश्वविद्यालय सुचना के अधिकार कानून के तहत निर्धारित दस रुपये की मूलभूत फीस व दो रुपये प्रति पेज से ज्यादा की मांग छात्र से नहीं कर सकता । सूचना आयोग ने कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय को 25 दिन के अन्दर सूचना के अधिकार कानून के तहत निर्धारित फीस लेकर उत्तरपुस्तिका की प्रति प्रदान करने के आदेश दिए हैं ।
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