चुनावों के दौरान लोगों को वोटों के लिए बहलाने-फुसलाने के मकसद से राजनीतिक
पार्टियों द्वारा किये गए वायदों को लागू करवाने की जनहित याचिका प्रदीप रापडिया
एडवोकेट ने मंगलवार को दुबारा हाई कोर्ट में दायर की । ज्ञात रहे कि पिछले महीने
श्री रापडिया ने इसी मुद्दे को लेकर ये कहते हुए साधारण याचिका दायर की थी कि
क्योंकि वो किसान परिवार से सम्बन्ध रखते हैं और याचिका में की गयी प्रार्थना
मंजूर होने पर वो स्वामी नाथन आयोग रिपोर्ट लागू होने से सीधे तौर पर लाभान्वित
होंगे और याचिका में निजी हित सम्माहित होने के कारण वो जनहित याचिका दायर नहीं कर
सकते। लेकिन हाई कोर्ट के जज राकेश जैन ने मामले की सुनवाई के बाद आदेश पारित किये
मामला व्यापक जनहित से सम्बंधित है और याचिकर्ता को जनहित याचिका ही दायर करनी
चाहिए । इस बार जनहित याचिका में भारतीय जनता पार्टी व शिरोमणी अकाली दल के अलावा
कांग्रेस, बहुजन समाजवादी पार्टी, कम्युनिस्ट पार्टी आदि को भी प्रतिवादी बनाकर ये
भी मांग की गए है कि सभी राजनीतिक पार्टियाँ अपने दफ्तरों में सूचना के अधिकार को
लागू करें ।
दरअसल लालबहादुर शास्त्री के निधन के बाद इंदिरा गांधी द्वारा
कांग्रेस में वर्चस्व स्थापित करने, तथा सत्ता हासिल करने के उद्देश्य से 'गरीबी हटाओ' का नारा दिया गया था, जिसकी वास्तविकता हम आज भी देख रहे हैं। इसके बाद भारतीय राजनीति में
नारों और वादों का एक नया दौर शुरू हुआ, जो अब सभी दलों
द्वारा अपना लिया गया है। पिछले लोकसभा चुनावों में बी.जे.पी. के चुनावी वादे भी लोगों को
मुर्ख बनाकर वोट लेने के लिए मात्र जूमला ही बनकर रह गए।
लेकिन इस बार एडवोकेट प्रदीप रापडिया ने मौजूदा सरकार द्वारा चुनावों के दौरान
किसानों से स्वामीनाथन आयोग को लागू करने के वादे को लागू करवाने के लिए हाई कोर्ट
में याचिका दायर की है । याचिका में कहा गया है
कि देश में भ्रामक विज्ञापन तथा बाबाओं द्वारा ठगी के
लिए कानून हैं, फिर नेताओं द्वारा गलत या झूठे वादे करके सरकार बनाने
के विरुद्ध सख्त कार्रवाई क्यों नहीं की जाती...?
कृषि के साथ ही किसानों की भी चिंता से व्यथित होकर आज से ग्यारह साल
पहले 2004 में राष्ट्रीय किसान आयोग का
गठन किया गया था, जिसके अध्यक्ष डॉ एमएस स्वामीनाथन ने
किसानों के हालात को बयान करते हुए यह रिपोर्ट 2007 में ही सरकार
को सौंप दी थी। उस भारत सरकार को जिसके मुखिया बीते एक साल से खुद नरेंद्र मोदी
हैं। सत्तारूढ भाजपा के किसान मोर्चा अध्यक्ष ओपी धनखड़ और उनके सहयोगी इन्हीं
स्वामीनाथन की रिपोर्ट को लागू करने की मांग को लेकर लोकसभा चुनावों के पहले तक
किसान संगठनों के साथ-साथ अर्ध नग्न होकर धरने प्रदर्शन में हिस्सा लेते रहे। अब
यही धनखड़ हरियाणा के कृषिमंत्री हैं लेकिन स्वामीनाथन रिपोर्ट लागू करने की
सरकार चर्चा भी नहीं कर रही
याचिका में राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो की रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा गया है कि किसानों
की हालत और हालात तो ऐसे हैं कि राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) को अपनी हालिया रिपोर्ट ‘ दुर्घटना में मौतें और आत्महत्याएं 2014’ में “
भारत में किसानों की आत्महत्या” के नाम से एक
अलग चैप्टर जोड़ना पड़ा। एनसीआरबी रिपोर्ट में
साफ लिखा है कि किसानों की आत्महत्या का सबसे बड़ा कारण कर्ज में डूबना ही है।
कर्ज और किसानी से जुड़े मुद्दों से परेशान होकर 41.8 किसानों
ने आत्महत्या की। हिमाचल प्रदेश में तो 87.5 प्रतिशत किसानों
ने इसलिए आत्महत्या कर ली क्योंकि उनकी फसल बरबाद हो गई थी। इस रिपोर्ट में यह भी
लिखा है कि बीते साल 18 वर्ष से भी कम आयु के 2 बच्चों ने इस वजह से आत्महत्या कर ली क्योंकि उनके सर ट्रैक्टर-पंपसेट
जैसे कर्ज थे जिसे वे चुका नहीं पाए। 26 बच्चों ने फसल खराब
हो जाने के कारण फांसी लगा ली या जहर खा लिया या चिंता में जल मरे। 22 बच्चों ने किसानी पर प्रकृति की मार से त्रस्त होकर अपनी जान दे दी।
याचिका में कहा गया है कि तमिलनाडु में
जयललिता द्वारा मतदाताओं को फ्री वादों से लुभाने के मामले में सुप्रीम कोर्ट
द्वारा चुनाव आयोग को निर्देश दिया गया था कि वह राजनीतिक दलों के घोषणापत्र के
कंटेन्ट पर नियमन हेतु कानून बनाने की पहल करे और उस पर सभी राजनीतिक दलों की
खामोशी लोकतंत्र के लिए दुखद है । मामले की सुनवाई बुधवार को हाई कोर्ट में
होगी ।
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