Tuesday, January 10

ए.जी. हरियाणा में वकीलों नियुक्ति प्रक्रिया को दूसरी बार हाई कोर्ट में चुनौती : नियुक्ति का कानून नया लेकिन वकील पुराने! सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद खट्टर सरकार ने बनाया था नया कानून! कानून बनने से पहले की न्युक्तियों को किया वैध !


ए.जी. हरियाणा में वकीलों नियुक्ति प्रक्रिया को दूसरी बार हाई कोर्ट में चुनौती : नियुक्ति का कानून नया लेकिन वकील पुराने! सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद खट्टर सरकार ने बनाया था नया कानून! कानून बनने से पहले की न्युक्तियों को किया वैध !

           एडवोकेट जनरल ऑफिस में वकीलों नियुक्ति प्रक्रिया को याचिकर्ता प्रदीप रापडिया एडवोकेट ने  दूसरी बार हाई कोर्ट में चुनौती दी है, जिसकी सुनवाई 11 जनवरी को डबल बेंच के सामने होगी ! ज्ञात रहे कि इससे पहले हाई कोर्ट में वकालत कर रहे प्रदीप रापडिया ने नियुक्ति प्रक्रिया को भाई-भतीजावाद व सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी और याचिकर्ता की दलीलों से स्वीकारता हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि सभी भर्तियाँ बिना किसी निर्धारित कानून या नियम के की गयी थी जिसमे भाई-भतीजावाद व राजनितिक पक्षपात  होने की संभावना को इनकार नहीं किया जा सकता. हालांकि चूँकि याचिकर्ता ने वकीलों को हटाने की अपनी प्रार्थना को सुप्रीम कोर्ट में वापिस ले लिया था इसलिए सुप्रीम कोर्ट के तत्कालिन मुख्य न्यायधीश तीरथ ठाकुर ने अपने अहम् फैंसले में  कहा था कि वो वर्तमान नियुक्तियों में हस्तक्षेप नहीं कर रहे हैं लेकिन भविष्य में कोई भी नियुक्ति होगी तो निर्धारित प्रक्रिया के तहत ही होगी. सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि नियुक्तिओं के लिए बकायदा आवेदन आमंत्रित किये जायेंगे और कोई भी नियुक्ति न्यायपालिका के विचार-विमर्श के बिना नहीं होगी !  सुप्रीम कोर्ट के आदेशों उपरान्त हरियाणा सरकार ने सितम्बर में लॉ ऑफिसर सिलेक्शन अधिनियम पास करके नियुक्तियां करने के लिए कानून बनाया था ! नए क़ानून में प्रक्रिया तो निर्धारित की गयी लेकिन सभी पुरानी नियुक्तियों को वैध घोषित कर दिया गया !
याचिकर्ता प्रदीप रापडिया ने हरियाणा सरकार के नए कानून को चुनौती देते हुए कहा है कि जिन नियुक्तियों को सुप्रीम कोर्ट ने बिना किसी निर्धारित कानून या नियम के पाया था उन्ही नियुक्तियों को सरकार द्वारा वैध घोषित करना अन्य वकीलों के नियुक्ति के अधिकार के साथ खिलवाड़ है. याचिका में ये भी कहा गया है कि नए कानून में एडवोकेट जनरल को अपनी मर्ज़ी से किन्ही पाँच वकीलों को नियुक्त करने का अधिकार दिया जिनको किसी निर्धारित प्रक्रिया से गुजरने कि जरूरत नहीं है, जो अपनी चहेतों को रेवड़ी बांटने के समान है. याचिका में दलील दी गयी है कि पूरी प्रक्रिया में न्यायपालिका से विचार-विमर्श को दरकनार कर दिया गया है जिससे नियुक्तियों में राजनितिक हस्तक्षेप ज्यों का त्यों बना रहेगा ! हाल ही के कैबिनेट के चार जनवरी के उस फैंसले के ऊपर भी सवाल खड़े किये गए हैं जिसमे नए लॉ ऑफिसर सिलेक्शन अधिनियम में संशोधन का फैंसला लिया गया ताकि पहले से काम कर रहे वकील जिनका कार्यकाल पूरा हो चूका हैं उनको को निर्धारित प्रक्रिया के गुजरे बिना लगातार ए.जी. दफ्तर में काम करते रहने का रास्ता साफ़ हो जाए.



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