धरती पुत्र किसान सदा से किस्सा-ए-अन्न ही बन
कर रह गया। आज तक इस किस्से को राजनेताओं, गाथा गायकों, समाज के ठेकेदारों, नीति निर्धाकों व न जाने कितने
लोगों ने भुनाया व गाकर खुद नाम और धन कमाया। किसान फिर भी किस्सा ही बन कर रह गया,
उसके लिये वास्तव में किसी ने कुछ नहीं किया और न ही करने की आस नजर
आती है। मजेदार बात तो यह है कि उसके अपने भाई भी संगठन बनाकर उसके नाम पर निजी
स्वार्थ साधते नजर आते हैं। अगर वास्तव में किसानों के हितों के लिये कुछ करने की
सोच इन लोगों मे होती तो अकेले हरियाणा प्रदेश में ही भारतीय किसान यूनियन के नाम
पर इतने संगठन न खड़े होते। कुछ तथाकथित किसान
नेता किसानों की आड़ में अपने राजनीतिक हित साध रहे हैं। किसान यूनियन के नाम पर
कई लोग चुनाव लड़ किसान यूनियन के नेता किसानों के साथ धोखा कर रहे हैं। ऐसे लोगों को किसान
हितों से कोई लेना-देना नहीं है, इनकी कहीं पर निगाहें ओर कहीं पर निशाना है। जिसके कारण किसान की हालत काफी बदहाल हो गई है ।
आज तक कितने
किसान नेताओं ने वैज्ञानिक विधि से खेती करने का प्रचार किया है ! आज तक कितने
किसान नेताओं ने किसानों को भ्रस्टाचार की मार से बचाया है । ऐसे तथाकथित
किसान नेताओं से किसानों को बचना होगा। इससे किसानों को भला नहीं होने वाला। अगर किसी
यूनियन के नेता ने राजनीति में भागीदारी करनी है तो उसे अपने बलबूते पर करनी चाहिए,
लेकिन किसान के कन्धों पर चढ़कर राजनीति किसी भी कीमत पर नहीं होनी देनी चाहिए ।
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