हरियाणा के भ्रष्ट आई.ए.एस., आई.पी.एस., एच.सी.एस. व एच.पी.एस. अधिकारियों के
नाम व उनके खिलाफ कार्यवाही की सूचना छुपाने के मामले में एडवोकेट जनरल के पेश
होने की संभावना: मामले में निर्णायक बहस 1 जून को ।
भ्रस्टाचार में संलिप्त हरियाणा केडर के
आई.ए.एस., आई.पी.एस., एच.सी.एस., एच.पी.एस. अधिकारियों के बारे में सूचना
लोगों को सूचना के अधिकार के अंतर्गत नहीं दी जा सकती, यह अधिकारियों की व्यक्तिगत सूचना है और
यह सरकार और अधिकारियों के बीच का मामला है, ये जवाब हरियाणा सरकार के वकील ने बहस के दौरान एक याचिका के
जवाब में हाई कोर्ट को दिया है । इस पर याचिकर्ता सुभाष चंदर के वकील प्रदीप
रापडिया एडवोकेट ने हाई कोर्ट को सूचित किया कि सूचना के अधिकार के कानून के
अनुसार जो सूचना देश की संसद या विधानसभा को देने से मन नहीं किया जा सकता; उस सूचना को आम नागरिक को भी माँगने का
अधिकारी है और संसदीय नियमों के अनुसार भ्रस्टाचार में संलिप्त अधिकारियों की
सूचना देश की संसद से नहीं
छुपाई जा सकती । बहस के दौरान याचिकर्ता की वकील कोर्ट को ये भी बताया कि भारत
सरकार ने भ्रस्टाचार के विरुद्ध अंतराष्ट्रीय संधी पर हस्ताक्षर किये हैं, जिसके अनुसार भ्रस्ताचार के विरुद्ध
मुहीम में आम जनता को भागीदार बनाने का आह्वान किया है । सरकार की तरफ से पेश हुई
वकील ने संसदीय नियमों व अंतराष्ट्रीय संधी के बारे में अपनी अनभिज्ञता जाहीर की
तो जस्टिस राकेश जैन ने याचिकर्ता के वकील प्रदीप रापडिया को संसदीय नियमों व
अंतराष्ट्रीय संधी की कॉपी सरकारी वकील को देने की हिदायत देते हुआ कहा कि मामला
बहुत गम्भीर है इसलिए एडवोकेट जनरल को इस मामले की गंभीरता के बारे में सूचित किया
जाना चाहिए ताकि या तो एडवोकेट जनरल खुद पैरवी करके या उनकी हिदायत के अनुसार
मामले में अच्छे ढंग से सरकार के पक्ष को कोर्ट के सामने रखा जा सके । ऐसे में
निर्णायक बहस के लिए 1 जून की तारीख निर्धारित की है ।
ज्ञात रहे कि प्रार्थी ने अपने वकील
प्रदीप रापडिया के माध्यम से हाई कोर्ट याचिका दायर करते हुए कहा कि सभी सरकारी
अधिकारी जनता के नौकर हैं और जनता के ये जानने का पूरा हक़ है कि कौन अधिकारी
भ्रस्टाचार के मामलों में संलिप्त हैं और उनके खिलाफ सरकार ने क्या कार्यवाही की ।
ऐसी सूचना व्यक्तिगत हो ही नहीं सकती । याचिका में भी कहा गया है कि जब किसी आम
आदमी के खिलाफ मुक्कद्मा दर्ज होता है तो मीडिया और अन्य लोग खुलकर मुक्कद्मे के
बारे में बोल सकते हैं, लेकिन भ्रष्ट अधिकारियों के बारे में
सूचना देने से मना करके ऐसे अधिकारियों के मीडिया व अन्य लोगों का मुंह बंद कर
दिया गया है, ऐसे में एक आम
आदमी व भ्रष्ट अधिकारी के बीच भेदभाव किया जा रहा है ।
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