Tuesday, December 19

कैथल के सरकारी हस्पतालों की चरमराई हालात! लोग हाई कोर्ट जाने की तैयारी में

आमजन को बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैया करवाने के दावे कम से कम प्रदेश के कैथल जिले के हस्पतालों में तो पूरे होते दिखाई नहीं देते।एडवोकेट प्रदीप रापड़िया की आर.टी.आई. के जवाब में चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं।यहां चिकित्सक स्टाफ की कमी कहें या फिर व्यवस्था में लापरवाही कुछ भी हो आखिर इसका खामियाजा ज़िले के लोगों को भुगतना पड़ रहा है। नीचे दिये आंकड़े यहां की चिकित्सा व्यवस्था को साफ-साफ बयां कर रही है।






बालू के अस्पताल में कुल 25 मंजूरशुदा पदों में से 22 पद खाली पड़े हैं ! बाता में 24 पदों में से 15 खाली हैं ! इसी तरह गाँव देवबन में कुल 14 मंजूरशुदा पदों में से 11 पद खाली पड़े हैं! और तो और तहसील का दर्ज़ा मिले कलायत के हस्पताल में कुल 8 डॉक्टरों की पोस्ट मंज़ूर है लेकिन 6 पोस्ट खाली पड़ी हैं ! इसी तरह कैथल के अन्य गाँव का भी बुरा हाल है ! एडवोकेट प्रदीप रापड़िया ने बताया कि उनके गाँव बालू में 17-18 साल पहले से करोड़ों रुपये की लागत से हस्पताल बना हुआ है लेकिन उस हस्पताल में ना तो कोई डॉक्टर है, ना ही फार्मासिस्ट और ना ही कोई नर्स या दाई, जिसकी वजह से मरोज़ों को, खास तौर से बुजुर्गों, अपाहिजों व गर्भवती महिलाओं को ना सिर्फ परेशानी का सामना करना पड़ता है बल्कि प्राइवेट हस्पतालों में अपनी जेब ढीली करनी पड़ती है। ऐसे में हस्पताल के बनाने में खर्च हुए सरकार के करोड़ों रुपए बेकार चले गए हैं। गाँव बालू की तीनों पट्टियों के लोग सी.एम. विंडो पर कई बार गुहार लगा चुके हैं लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला।स्वास्थ्य मंत्री दावे तो बडे़ बडे़ करते हैं लेकिन सब खोखले हैं। अस्पताल में पिछले कई सालों से डॉक्टरों की कमी बनी हुई है  , ऐसे में गाँव के लोगो की तरफ से प्रदीप रापड़िया ने सरकार व स्वास्थ्य विभाग को लीगल नोटिस जारी करते हुए कहा है कि अगर 15 दिन के अंदर बालू हस्पताल के सभी रिक्त पदों को नही भरा गया तो उन्हें मूलभूत स्वास्थ्य सेवाओं के लिए हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाना पड़ेगा। लीगल नोटिस में सरकार को चेताते हुए कहा गया है कि स्वास्थ्य, शिक्षा व सुरक्षा सरकार की मुख्य मूलभूत जिम्मेवारियां हैं और बड़ी दुर्भाग्य की बात है कि ऐसी मूलभूत जरूरतों के लिए भी सरकार द्वारा बार बार गुहार न सुनने पर लोगों को हाई कोर्ट का रूख करना पड़ता है!
         कैथल के नागरिक हस्पताल का बालू के अस्पताल से भी बुरा है , यहाँ 36 डॉक्टरों के पद खाली पड़े हैं के व 59 नर्सों के पद खाली पड़े होने की स्थिति में, घंटों चिकित्सक कक्षों के सामने मरीजों की कतार, हाथों में ओपीडी रसीद लिए चिकित्सकों की तलाश में अस्पताल परिसर में घूमते रोगियों की हालत यहां की चिकित्सा व्यवस्था को साफ-साफ बयां कर रही है। देखने को मिलता है कि मरीजों को कभी एक तो कभी दूसरे कक्ष में चेकअप कराने की बातें कहकर चक्कर लगवाए जाते हैं और जब यह मरीजों को अखरता है तो चिकित्सक एमरजेंसी डयूटी बताकर जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ते देर नहीं लगाते। अस्पताल में स्टाफ की कमी के कारण यहां तैनात चुनिंदा चिकित्सकों पर कार्यभार का दबाव भी है। एक कक्ष से दूसरे कक्ष में चिकित्सकों का दौरा भी लगा रहता है। यहां साफ हो जाता है कि अस्पताल में चिकित्सकों की कमी है। यही कारण है कि उपचार के लिए मरीजों को घंटों तक अपनी बारी का इंतजार करना पड़ता है।
         एडवोकेट प्रदीप रापड़िया ने बताया कि अगर लोग अपने अधिकारों के बारे में जागरूक हो और सरकार पर दबाव बनाएं तो सब समस्याओं का समाधान ही सकता है। अगर जागरूक लोग उनके पास आते हैं तो स्वास्थ्य व शिक्षा के अधिकारों के लिए अभियान चलाएंगे।

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